Wednesday 13 May 2020

मंद दिवा स्वप्नों में
अतिश्योक्तियों के कुछ अंश है
विशेष अब कुछ नही
पूर्व विशेषणों के दंश है
मधु वाक्यों में संदर्भ गुणों में
उपेक्षित शब्दों के कड़वे रस हैं।

लक्ष्य कठिन हो तो भी ठीक
मार्ग कठिन हो तो भी ठीक
समानांतर कठिन लक्ष्यों के
मार्ग अलग हो तो भी ठीक
पर उद्धेस्यों में प्रतिस्पर्धा हो
भोगी सतत जलता रहता हो
फिर भी सूत्र को कोई मणि न मिले
तो योगी पूर्व विशेषणों के विष में जीता है।

तरुण लक्ष्यों के वृद्ध शाखों में
विविध रूपों का प्रकट भेद है
निज विवश हो अति प्रिय शाखों से
अति प्रिय शाखों को ही कटना है
जड़ें तने से लिपट
मन के भीतर ही दबाती है
मन्द दिवा स्वप्नों में
न विवशता है ना विश्वाश है।

Saturday 18 April 2015





इस महान दौर में
जहां बोलते हैं निष्प्राण भी.
बोलती है जिव्हा
दाँतो में सिमट के
'सुन रहा  है क्या कोई'
क्या सोचती हूँ मैं कभी?
की प्राण,तेज़,विश्वास भी
खो रही है ये सखी तेरी।

बदल चुकी हूँ दौर मैं
दिए हैं युग नए कई.
नम्रता और प्रेम से
बदल चुकी हूँ मन कई।

ये कौन से युग में ले आया है
मानव तू मुझे,
जहां झूठ और दोष ही
अब शब्द हैं मेरे।

एक बार बस पलट के
इतिहास मेरा देख ले।
जो सीख दी है पहले
उस सीख को बस सीख ले।

 राम -रहीम, कृष्ण-कबीर
जैसा भी  मैंने बनाया है ,
विश्व को सारे
नतमस्तक भी कराया है।

कृष्ण-सुदामा, भक्त-भगवन
जैसा कर दे बस अपना आचरण,
विश्व करेगा जय-जयकार
आकाश बनेगा तेरा आवरण।










Sunday 22 March 2015

                                                     

                                                  जीवन यात्रा 

               



है प्राण तो साँस तो  चलती रहेगी
है साँस तो देह को रोकना नहीं।
बुद्धि अगर हो जाए भी भ्रमित कभी
कर्म दूषित होने देना नहीं।

है पंख तो आकाश मन छूता ही है
है पंख नहीं तो यात्रा कभी रोकना नहीं।
मन ही है  निराश तो कभी होगा ही
कर्म से कभी निराश होने देना नहीं।

है गुरु तो शिक्षा तो देगा ही
है ज्ञान पर तो अभिमान कभी करना नही.
है रंग अगर तो श्याम-स्वेत होंगे ही
अभिमान में ज्ञान काला करना नहीं।

जो देह को रुकने तुमने न दिया
ज्ञान काले से जो कर्म दूषित न किया
कर्म से निराश होगा न कोई
इस यात्रा का परिणाम सुखद होगा तभी।

Tuesday 7 January 2014

                                                          परम्परायें और समय 







मैं चीखता रहा,
देखकर डूबता सूरज
और सबने घरों में
बल्ब जला लिए,
मै देखता रहा
"अन्धकार"!

मै देखता रहा
बूढ़े होते
रथ के घोड़ो को
और सबने अपने बाल
रंग लिए.

मै देखता रहा
मरते, एक एक करके
सभी सार्थियों को, और
धीमे होते
गति रथ कि
"रथ सनातन धर्म" का

मै देखता रहा
घावों को जो
बढ़ रहे थे, और
आक्षेपो को जो
काला कर रहे थे
कुप्रथाओं को
जो डुबो रहे थे
सूरज को
चौतरफा प्रहार से
जो हो रहा था
सभी दिशाओं से
स्वयं कि किरणो के
सहयोग से.

मैं देखता रहा
टूटते प्राण दाई तार्रों को
जो टूट रहे थे
एक एक करके
आधुनिक समाज के
सर्वनाशी हथियारों से.
"प्राणघातक"

मई देखता रहा
झुकाव किरणो का
मुद्रफिसदी कि दरों में
और गिरता रहा
सामाजिक सद्भाव ,
चेतना और विश्वास।

मै सोचने लगा
काट इन सभी
रोगों का,
और बैठ गया
माथे को गाड़े
घुटनो के बीच
क्यूँ कि मै
खड़ा था तेज दौड़ते
विश्वबाजार में
जो खोलेगा
मंगल पे अपनी प्रयोगशाला।

क्यूंकि,
नहीं खीचना है
नए भुद्धिजीवों को
पुराना रथ, "सूरज का"
नहीं बनना है 'सारथि'
पुराने धर्म रथ का.

मैं 'समय'
खुद के चक्रों में
उलझा, बंधा
असहाय हूँ
और प्रतीक्षा कर
रहा हूँ
उस दृश्य का
जब धीरे-धीरे
सारे दिशाहीन और
भ्रमित घोड़े
निसप्राण हो जायेंगे
और एक आखिरी पीड़ा
जो होगी सिर्फ मुझे
उस आखिरी विनासकारी
दृश्य पे.
और
नव सृजन का जन्म होगा।

(फिर धीर-धीरे
सारे तारे टूट जायेंगे
और
एक  आखिरी चीख
एक आखिरी विनाशकारी
दृश्य पे
और फ्हिर मैं हो गया
"निष्प्राण" )

Monday 6 January 2014

राहों कि कदमें, और
कदमों कि राहें,
टिकीं हैं क्यूँ मुझी पे
हर मोड़ कि निगाहें।

ज़िन्दगी कि सांसें, और
सांसों कि जिन्दिगिया,
हर जीत में दिखती हैं
सैकड़ो कमियां।

आँसुयों कि उलझने, और
उलझनो कि नजदीकियां
नजदीकियों के काफिले,और
काफिलों में दूरियां।

बस रूख्सतो का मिलना, और
चाहतो का सिलना,
कहाँ खो गयी हैं
सारी नजदीकियां।

सम्भलने से डरना ,और
डर डर के संभलना,
उफ़ ये हैरानियाँ, और
हैरानियों कि गलियां।

कब तक सिलेगा ये
शख्स खुद के किस्सो में,
कि किस्सो कि कहानियाँ,
जुदा होती निशानियाँ

उम्मीदों का दामन, और
दामन कि बेवफाईआं,
कुछ कम भी तो नहीं हैं
इस शख्स कि खुद से
रुशवाईयां।  

Tuesday 17 December 2013


                                                                                                  
                                                             वियोग की नाव



कब तक मुरझाए जज़बातो से 
जिंदगी उधार लोगे,
कब तक सुखी धाराओं से,
आन्सुयों की गुहार लोगे।

जिस पुष्प सरीखी सखी को 
दिन रात तुम पुकारते हो,
जिसकी हर शब्द तरंग को
हृद्य में सँभालते हो 
कब तक उस धूमिल मधुर से
जीवन को पुकार लोगे।
कब तक मुरझाए जज़बातो से 
जिंदगी उधार लोगे।

प्रेम-बंधन, प्रेम-प्रिय
प्रेम-मोह, प्रेम-प्राण,
कब तक इन जोड़ो से
गीतो को पुकार दोगे,
रेगिस्तानो से सूखे सन्नाटो में
क्या प्रेम गीत फिर संवार लोगे:
कब तक उस धूमिल मधुर से
जीवन को पुकार लोगे।
कब तक मुरझाए जज़बातो से 
जिंदगी उधार लोगे। 

गर्भिणी सागर सी गूँजो को 
जिन्हे पाल रहे हो भीतर वर्षो से
उस चन्द्र सी शीतल आभा
जिसे चूमते हो गहरी साँसों से,
क्या इन सारी गुंजोको 
सारी शीतलता को
 "जीवनभर" 
जीवनभर क्या इस पीड़ा को
संगनी सा प्यार दोगे।
कब तक मुरझाए जज़बातो से 
जिंदगी उधार लोगे।  

बुझी आँखों के रूखी पलकों से
तेह कर के रखे सूखे पत्रो को
रूखी पलकों के पानी से 
रूखी पलकों के पानी से क्या
जीवन भर  उन यादो को
जीवन तुम उधार दोगे।

जब तेज साँसो से भय देके
आतुर अन्त पुकारेगा 
जब कपट छल की दुनिया को
तुमसे अलग कर पानेको 
लपट चिता कि माता सी
अपनी ओर बुलाएगी 
तब भी क्या विनती में
उसी पीड़ा को जीने को
जीवन और माँगोगे
तब भी क्या उसी पुष्प सखी को
जिसे तुम पुकारते हो,
जिसके हर शब्द तरंग को 
हृदय में सँभालते हो,
उस चन्द्र प्रभा के गीतो को
मृत्यु से तुम टाल लोगे,

कब तक मुरझाए जज़बातो से 
जिंदगी उधार लोगे,
कब तक सुखी धाराओं से,
आंशुओं की गुहार लोगे।











Monday 10 September 2012

GAURIYA KE GHOSLAE AUR GHAR KA ROSHANDAN.


SAMAY SE HAR KE NJANE KITNE JEEV IS DRA KO CHOD CHUKE HAI AUR UNKE SAATH HI CHOD CHUKI HAI AANE WALI PIDHI KE LIYE PRAKRITI SE MILNE WALI BHOOT SI ACCHI YAADEIN UNME SE EK HAI GAURIYA AUR USKA JODA JO GHAR MEIN HI GHOSLA BNATI THI AUR HUMARI GARMIO KI CHUTIYOUN MEIN HUME EK AISA DOST MIL JATA THA JO HUMSE BINA BAAT KIYE HUMSE KHOOB ACCHI DOSTI KR LETA THA. PAR SAMAY KE PARIVARTNO NE AISE BHOOT SE RISTO KO NAKAR DIYA.




KUCH MATMAILE RANG KI ,
AUR CHOTI SI CHOCH
AISE THI GAURAYIA, 
GALE KE NICCHE THODA SA
KALE RANG KA TIKA
AISA JODA MILA THA USKO.
DONO SATH REHTE THE HAMESHA
MERE GHAR KE ROSHANDAN MEIN.

APNI CHOTI SI CHOCH MEIN
PAKAD KE VO NJANE KHA SE KUUSH KE TINKE
LAATE THE ,
AUR GHAR KE ROSHANDAN MEIN
CHOTA SA GHOSLA BNATE THE
HUM AKASAR BAIT KE UNKO
DEKHTE REHTE THE
TINKO KA DHER UNKA GHAR BAN JATA THA
AUR EK NYA JODA MEHMAN BAN JATA THA
MERE GHAR KE ROSHANDAN MEIN.

KABHI KABHI JAB
UNKE TINKE NICHE GIR JATE THE
TO HUM INTZAAR KRTE KI KAB DONO
JAAE BAHAR
PHIR KURSIYO PE CHAD KE UNKE
GHOSLE MEIN VO TINKE RAKH DETE THE
HUMARI KHUSI KA THIKANA NHI REHTA THA
SABKO BTAATE THE YE BAAT.
SARE GHAR KI SAFAI HOTI THI
JALE HTATE THE
PAR KUCH HONE NHI DETE THE GHOSLE KO JO BNA THA
MERE GHAR GHAR KE ROSHANDAN MEIN.

KABHI KABHI DAAT BHI PADTI THI
BADO SE KI TANG MAT KRO USKO
NHI TO GAHR CHOD KE CALI JAAEGI
KUCH DIN BAAD GAURIYA TINKE CHOD KE
APNI CHOCH MEIN KHANA LE KE ATI THI
VO JAISE HI GHOSLE KE PAAS PAHUCTI THI
USKE BACCHE JOR JOR SE CHI CHI KRTE THE
DONO JODE MIL KE DIN BHAR APNE BACCHO
KO KHANA KHILATE THE
AUR JAB KABHI GAURAIYA
KIDDE LEKE AATI THI
AUR VO NICCHE GIR JAATE THE
TAB MUMMY BHOOT CILLATI THI
BILLI KI NAJAR HAMESHA REHTI THI
MERE GHAR KE GHOSLE MEIN.

BACCHE BADE HO KAR
JAB UDNA SIKHTE THE
TO KABHI KABHI NICCHE GHIR JATE THE
FIR JAISE KOLAHAL SA MACH JATA THA
PURE GHAR MEIN
GAURAIYA AUR USKA JODA PURRE GAHR KO APNE
SIR PE UTHA LETE THE
AUR HUM PARESHAN HO JATE THE
DAR BHI LAGATA THA KI KHI BILLI
NA AAJAYE ,
MAN BHI BHOOT HOTA THA KI USKE BAACHON
KO UTHA KE PYAAR KREIN AUR KHELE
USKI CHOTI CHOTI ANKEIN AUR BHOOT CHOTI
SI CHOCH DEKH KR HUM BHOOT KHUSH HOTE
AUR AISA LAGTA THA JAISE
KOI ASI CHEEZ MIL GAYI HO
JO SARE KHILAUNO SE AACHI HO.

CHHUTIYA KHATAM HOTE HOTE
USKE BACCHE BADE HO JATE THE
AUR VO APNO BAACHO KE SATH
GHAR CHOD KE CALI JATI THI
HUM USKE GHOSLE KO UTTAR KE
DEKHTE THE AUR GHANTO BEHAS HOTI
KI KAISE BNAYA ITNA SUNDAR GHOSLA.

GAURAYIA KE JANE KE BAAD
GHAR JAISE UDAAS HO JATA THA
BILKUL VAISE JASE NANI KE GHAR
SE BAACHO KE CALE JANE KE BAD
USKA GHAR UDAS HO JATA HAI.

PAR AGLE SAAL
PHIR GAURAIYA AATI THI
APNE JODE KE SATH
AUR HUM SOCHT THE KI
VO VHI JODA HAI
AUR APNA PAN SA LAGTA THA
UNKE SATH.

PAR SAMAY KI TEJI NE
AISE NJANE KITNE
JODE ALAG KR DIYE YA
BNANE HI NHI DIYE
GAURAYIA SIRF CIDIYA
NHI THI
EK YUG KI SEHBHAGI THI
JAB BHARTIYA SAMAJ
MEIN JIVO KE LIYE PREM THA
AUR AASHRAY DENE KI PARAMPARA
AB KHUD GHOSLE MEIN REHNE PE VIVASH
SAMAJ APNE JEEV PREM KO APNE
KUL AUR SAMBANDHIYO TAK HI SIMIT KR CHUKA HAI.


GAURAIYA AB VILUPT HO RHI HAI
AUR VILUPT HO RHI HAI
SAMAJ KE LIYE AAVASAYK
PARAMPARAYEIN
JO JODTI THI SAMAJ AUR PRAKRITI KO
AUR SIKHATI THI PREM AUR AASHRAY KI
BHASA.