वियोग की नाव
कब तक मुरझाए जज़बातो से
जिंदगी उधार लोगे,
कब तक सुखी धाराओं से,
आन्सुयों की गुहार लोगे।
जिस पुष्प सरीखी सखी को
दिन रात तुम पुकारते हो,
जिसकी हर शब्द तरंग को
हृद्य में सँभालते हो
कब तक उस धूमिल मधुर से
जीवन को पुकार लोगे।
कब तक मुरझाए जज़बातो से
जिंदगी उधार लोगे।
प्रेम-बंधन, प्रेम-प्रिय
प्रेम-मोह, प्रेम-प्राण,
कब तक इन जोड़ो से
गीतो को पुकार दोगे,
रेगिस्तानो से सूखे सन्नाटो में
क्या प्रेम गीत फिर संवार लोगे:
कब तक उस धूमिल मधुर से
जीवन को पुकार लोगे।
कब तक मुरझाए जज़बातो से
जिंदगी उधार लोगे।
गर्भिणी सागर सी गूँजो को
जिन्हे पाल रहे हो भीतर वर्षो से
उस चन्द्र सी शीतल आभा
जिसे चूमते हो गहरी साँसों से,
क्या इन सारी गुंजोको
सारी शीतलता को
"जीवनभर"
जीवनभर क्या इस पीड़ा को
संगनी सा प्यार दोगे।
कब तक मुरझाए जज़बातो से
जिंदगी उधार लोगे।
बुझी आँखों के रूखी पलकों से
तेह कर के रखे सूखे पत्रो को
रूखी पलकों के पानी से
रूखी पलकों के पानी से क्या
जीवन भर उन यादो को
जीवन तुम उधार दोगे।
जब तेज साँसो से भय देके
आतुर अन्त पुकारेगा
जब कपट छल की दुनिया को
तुमसे अलग कर पानेको
लपट चिता कि माता सी
अपनी ओर बुलाएगी
तब भी क्या विनती में
उसी पीड़ा को जीने को
जीवन और माँगोगे
तब भी क्या उसी पुष्प सखी को
जिसे तुम पुकारते हो,
जिसके हर शब्द तरंग को
हृदय में सँभालते हो,
उस चन्द्र प्रभा के गीतो को
मृत्यु से तुम टाल लोगे,
कब तक मुरझाए जज़बातो से
जिंदगी उधार लोगे,
कब तक सुखी धाराओं से,
आंशुओं की गुहार लोगे।