Wednesday 13 May 2020

मंद दिवा स्वप्नों में
अतिश्योक्तियों के कुछ अंश है
विशेष अब कुछ नही
पूर्व विशेषणों के दंश है
मधु वाक्यों में संदर्भ गुणों में
उपेक्षित शब्दों के कड़वे रस हैं।

लक्ष्य कठिन हो तो भी ठीक
मार्ग कठिन हो तो भी ठीक
समानांतर कठिन लक्ष्यों के
मार्ग अलग हो तो भी ठीक
पर उद्धेस्यों में प्रतिस्पर्धा हो
भोगी सतत जलता रहता हो
फिर भी सूत्र को कोई मणि न मिले
तो योगी पूर्व विशेषणों के विष में जीता है।

तरुण लक्ष्यों के वृद्ध शाखों में
विविध रूपों का प्रकट भेद है
निज विवश हो अति प्रिय शाखों से
अति प्रिय शाखों को ही कटना है
जड़ें तने से लिपट
मन के भीतर ही दबाती है
मन्द दिवा स्वप्नों में
न विवशता है ना विश्वाश है।