Monday 6 January 2014

राहों कि कदमें, और
कदमों कि राहें,
टिकीं हैं क्यूँ मुझी पे
हर मोड़ कि निगाहें।

ज़िन्दगी कि सांसें, और
सांसों कि जिन्दिगिया,
हर जीत में दिखती हैं
सैकड़ो कमियां।

आँसुयों कि उलझने, और
उलझनो कि नजदीकियां
नजदीकियों के काफिले,और
काफिलों में दूरियां।

बस रूख्सतो का मिलना, और
चाहतो का सिलना,
कहाँ खो गयी हैं
सारी नजदीकियां।

सम्भलने से डरना ,और
डर डर के संभलना,
उफ़ ये हैरानियाँ, और
हैरानियों कि गलियां।

कब तक सिलेगा ये
शख्स खुद के किस्सो में,
कि किस्सो कि कहानियाँ,
जुदा होती निशानियाँ

उम्मीदों का दामन, और
दामन कि बेवफाईआं,
कुछ कम भी तो नहीं हैं
इस शख्स कि खुद से
रुशवाईयां।  

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